1 जनवरी को भारत में पैदा हुए सबसे अधिक बच्चे, बढ़ती आबादी के लिए कितने तैयार हैं हम

1 जनवरी को भारत में पैदा हुए सबसे अधिक बच्चे, बढ़ती आबादी के लिए कितने तैयार हैं हम

नरजिस हुसैन

देश में पहली जनवरी, 2020 को करीब 67,385 बच्चों ने जन्म लिया। ये आंकड़ा पूरी दुनिया में उस दिन पैदा होने वाले बच्चों में सबसे ज्यादा है। युनिसेफ के इस अनुमान के मुताबिक इसी दिन विश्व में तकरीबन 4,00,000 बच्चों ने अपनी जिंदगी शुरू की थी। बच्चे पैदा करने की इस दौड़ में भारत के बाद नंबर आता है चीन का जहां पहली जनवरी या पहले दशक के पहले महीने में कुल 46,299 बच्चों ने जन्म लिया।

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2018 में ही देश में 25 लाख बच्चों ने अपने जीवन के शुरूआती महीनों में ही दम तोड़ दिया था। मरने वाले इन बच्चों में ज्यादातर बच्चे प्री-मेच्योर जन्म, डिलिवरी के समय या किसी-न-किसी संक्रमण के चलते अपनी जान गवां देते हैं। क्या बीते दशक के इन आंकड़ों को जानने के बाद भी भारत को इस दशक के शुरूआत में इतनी बड़ी तादाद में पैदा होने वाले बच्चों पर खुश होना चाहिए? किसी भी देश के लिए बढ़ती आबादी एक संपत्ति भी होती है और एक बोझ भी। मौजूदा संसाधनों को देखते हुए यह बात हर देश को खुद ही तय करनी होती है।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनिसेफ ने बताया कि पिछले तीन दशकों में पूरी दुनिया में बच्चों की पांच साल से पहले की मृत्युदर घटी है लेकिन, नवजात शिशुओं की मृत्युदर घटाने में कुछ खास सफलता नहीं मिली है। 2018 में पैदा हुए करीब 25 लाख नवजात शिशुओं में 47 प्रतिशत ने पहली महीने में ही दम तोड़ दिया था जो 1990 के आंकड़ों से 40 फीसदी ज्यादा था। युनिसेफ का मानना है कि ऐसा इसलिए होता है क्योकि जन्म देते समय साफ-सफाई की कमी और जच्चा-बच्चा की देखभाल में चूक से जो संक्रमण पैदा होते हैं वह ही उन दोनों के जीवन के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित होते हैं।

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दुनिया में तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था भारत के बारे में United Nations Inter-agency Group for Child Mortality Estimation (UNIGME) ने 2019 में अपनी सालाना रिपोर्ट में यह बात कही थी कि भारत में 2017 में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा शिशुओं ने दम तोड़ा। जिसमें साफतौर से यह कहा गया था कि 201 में भारत में 802,000 शिशुओं की जन्म से पांच साल के भीतर ही मृत्यु हुई जोकि विश्व में सबसे ज्यादा है। और इसी दौरान 605,000 नवजातों ने भी जन्म से 28 दिनों के अंदर दम तोड़ा।

हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संस्थान का कहना है कि बीते कुछ सालों में भारत सरकार ने इस दिशा में काफी सकारात्मक कदम उठाए हैं लेकिन, इसके नतीजे सामने आने में अभी और न जाने कितना वक्त लगेगा। बहरहाल, संगठन का मानना है कि पानी, स्वच्छता, पोषण और प्रामिक साव्स्त्य सुविधाओं की घर-घर पहुंच न हो पाना शिशु मृत्युदर न थमने के खास कारण हैं। भारत में जो शिशु मरते हैं उन्हें रोका जा सकता है अगर सबको समान तरीके से स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें खआसकर नवजा के पैदा होने के समय। हालांकि, यह भी सच है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा घन आवंटित करने से सरकार इस दर को कम करने की पूरी कोशिश कर रही है।

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इन सब हकीकतों के बावजूद भारत की आबादी लगातार बढ़ी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2027 तक भारत की आबादी चीन को भी पार कर जाएगी। संस्था का अनुमान है कि भारत में 2019-2050 के बीच जनसंख्या में करीब 27.3 करोड़ की बढ़ोतरी होगी। इसके बाद दुनिया में जहां तेजी से आबादी बढ़ेगी उसमें नंबर आता है नाइजीरिया का और भारत और नाइजीरिया को मिलाकर देखा जाए तो 2050 तक पूरे विश्व की जनसंख्या का 23 प्रतिशत सिर्फ इन्हीं दोनों देशों में बस रहा होगा।

चीन में 2019 में 1.43 खरब की आबादी है और भारत की 2019 तक की जनसंख्या 1.37 खरब है जो पूरी दुनिया की आबादी की 2019 तक 19 और 18 प्रतिशत रही। लेकिन, हम भारतवासियों को यह देखना होगा कि अगर आबादी को अब भी वक्त रहते थामने की कोशिश न की गई तो इस दशक के अंत तक भारत विश्व में सबसेज्यादा जनसंख्या वाला देश हो जाएगा जिसकी कुल आबादी करीब 1.5 खरब पहुंच जाएगी। इसके बाद चीन 1.1 खरब, नाइजीरिया 73.3 करोड़, अमेरिका 43.4 करोड़ और पाकिस्तान 40.3 करोड़ की जनसंख्या वाले देश होंगे। अब तेजी से बढ़ती इस आबादी के साथ भारत को यह तय करना होगा कि ये जनसंख्या उसकी संपत्ति है या उसके संसाधनों पर बोझ। कहीं ऐसा न हो आबादी के बोझ तले देश का वजूद ही खतरे में पड़ जाए। वक्त रहते इस बारे में सोचना और इस दिशा में सही कदम उठाना ही बेहतर होगा।

 

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